हमने कांटे वृक्ष, हमने तोड़े पहाड़ हमने उजाड़े जंगल नदियों के तटों पर हमने बना डाले अपने आशियाने।। वृक्षों को हम काटते रहे वर्षा लुप्त होती गई। पहाड़ हम तोड़ते रहे बादलों की दिशा बदली रही। जंगल हम काटते रहे प्राकृतिक रूठती रही।। नदियों में हम कचरा डालते रहे बाड़ संग नदियां लौटाती रही मनु अप्राकृतिक कृत्य करता रहा प्रकृति भी तब रूष्ठ होती रही प्रकृति ने तब अपना रंग दिखाया बाड़ कही भीषण सुखा गिराया।। मनु के समझ फिर भी न आया आंधी, सुखा कहीं बाड़ से प्रकृति ने बार बार समझाया अपना रोष विनाश कर बताया मानवीय अप्राकृतिक कृत्यों का विध्वंसक…
Social Plugin