शब्द मौन हैं, व्यथा बोलती है, मन की गहराई आँसू तोलती है। हर धड़कन में टीस छुपी है, मुस्कानों के नीचे पीर बसी है। वक्त के साथ सब बदल गया, पर दिल का दर्द वहीं अटल रहा। सपनों की राख अब हाथों में है, स्मृतियों की लहरें साँझों में हैं। जिसे अपना समझा था हमने, वही पराया बन चल दिए चुपचाप। तन्हाई अब साथी बन गई है, सांसों में ठहराव सा है चुपशान्त। आशाओं की लौ मद्धम पड़ी, नयनों की कोरें भी भीग पड़ीं। कह न सका जो कहना था, सुन न सके जो सुनना था। अब बस मौन है,तन्हा जीवन, हृदय की पुकार हैं अब मेरा अंतिम अपनापन!
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