आज की दौड़ती-भागती दुनिया में "सफलता" का पैमाना सिर्फ ओहदे, बैंक बैलेंस और लोकप्रियता बन चुका है। हर दूसरा युवा कहता है — "मुझे बड़ा आदमी बनना है।" पर क्या कभी किसी ने कहा, "मुझे अच्छा इंसान बनना है"? यह प्रश्न जितना सरल दिखता है, उत्तर उतना ही टेढ़ा और टालू हो गया है। एक समय था जब चरित्र, व्यवहार और इंसानियत को जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता था, पर आज ये शब्द केवल किताबों, भाषणों और सोशल मीडिया के कोट्स तक सीमित रह गए हैं। असल ज़िंदगी में अच्छाई, सहानुभूति और संवेदनशीलता को अक्सर कमज़ोरी समझा जाने लगा है। स…
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