जिंदगी का हर सफर एक नया मुकाम लाता है,
हर मोड़ पर एक चेहरा, एक कहानी सुनाता है।
कभी मुस्कान में छिपा होता है दर्द किसी का,
तो कभी खामोशी में झलकता है फ़र्ज़ किसी का।
हर नया सफर, नई पहचान बनाता है,
कभी भीड़ में छुपा, कोई इंसान नजर आता है।
कुछ लोग बनते हैं यादों की मिसाल,
कुछ रह जाते हैं जैसे अधूरी सी बात।
जो देते हैं साथ बिना शर्तों के,
जिनकी आँखों में उजाले हैं और हाथों में दीपक,
वही होते हैं असली मनुष्य –
जिनकी मानवता बेजुबान सी बोले।
न जात पूछी, न धर्म देखा,
बस दर्द में बाँध लिया एक दूजे को।
ये वही लोग हैं जो इंसानियत के दीप जलाते हैं,
जो ठंड में किसी को अपनी रोटी खिलाते हैं।
पहचान वो नहीं जो नाम से बनती है,
पहचान वो है जो काम से चलती है।
जो प्रेम बाँटे, जो दुःख हर ले,
वही इंसान, वही असली मनुष्यता कहलाए।
तो चलो, चलें उस राह पर जहाँ मन से मन जुड़ते हैं,
जहाँ हाथ थामने को लोग खुद आगे बढ़ते हैं।
क्योंकि हर सफर में मुकाम जरूरी नहीं,
कभी-कभी बस इंसान बने रहना ही काफी है।
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