जो बीत गया वो बीत गया ।
अब उस पर पछताना क्या ॥
गाया हुआ गीत है वो ।
अब उसको फिर गाना क्या ॥
जो बीत गया कब अपना था ।
वह तो केवल सपना था ॥
जो छोड़ गया बेरहमी से ।
उसके पीछे जाना क्या ॥
वो अपनी ही छाया थी ।
जो हमसे जुदा हो गई ॥
अब वो केवल याद बनी ।
उन यादों को दोहराना क्या ॥
ऐसा नहीं कि वो पागल था ।
ज़हीन था अच्छा ख़ासा ॥
जो समझ कर भी न समझे ।
फिर उसको समझना क्या ॥
कबीर तेरी कविताई क्या ।
जब कुछ बदलाव न कर पाए ॥
कुछ हलचल ना हो पाए ।
काग़ज़ पर स्याही गँवाना क्या ॥
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