जो बीत गया वो बीत गया /कबीर गांधी

जो बीत गया वो बीत गया ।

अब उस पर पछताना क्या ॥

गाया हुआ गीत है वो ।

अब उसको फिर गाना क्या ॥

जो बीत गया कब अपना था ।

वह तो केवल सपना था ॥

जो छोड़ गया बेरहमी से ।

उसके पीछे जाना क्या ॥

वो अपनी ही छाया थी ।

जो हमसे जुदा हो गई ॥

अब वो केवल याद बनी ।

उन यादों को दोहराना क्या ॥

ऐसा नहीं कि वो पागल था ।

ज़हीन था अच्छा ख़ासा ॥

जो समझ कर भी न समझे ।

फिर उसको समझना क्या ॥

कबीर तेरी कविताई क्या ।

जब कुछ बदलाव न कर पाए ॥

कुछ हलचल ना हो पाए ।

काग़ज़ पर स्याही गँवाना क्या ॥

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